शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को
शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने
दिल से जो कराह उट्ठी लैला को लिया तप ने
देखे तिरे जल्वा को बाम्हन की जो बेटी भी
मुँह से वहीं कलमे को यकबार लगे जपने
है जिंस परी सा कुछ आदम तो नहीं असलन
इक आग लगा दी है उस अमर्द-ए-ख़ुश-गप ने
इस तरह के मिलने में क्या लुत्फ़ रहा बाक़ी
हम उस से लगे रुकने वो हम से लगा छपने
हंगाम-ए-सुख़न-संजी आतिश की ज़बानी को
शर्मिंदा किया ऐ दिल उस शोख़ के गप-शप ने
हर अम्र में दुनिया के मौजूद जिधर देखो
आदम को किया हैराँ शैतान की लप-झप ने
गर्मी से मिरे दिल की इस मौसम-ए-सर्मा में
ये गुम्बद-ए-गर्दूं भी यकबार लगा तपने
रह वादी-ए-ऐमन की लेता हूँ कि घबराया
इस दिल की बदौलत याँ मुझ को तरफ़-ए-चप ने
है हम से भी हो सकता जो कुछ न किया होगा
मजनूँ से जफ़ा-कश ने फ़रहाद से सर-खप ने
चल हट भी परे बिजली दल बादलों को ले कर
दहला है दिया तेरी तलवारों की शप शप ने
कब तक न कराहूँ मैं नाला न भरूँ क्यूँ-कर
मैं क्या करूँ ऐ 'इंशा' अब जी ही लगा खपने